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माँ का ख़त -
कैसे मैं तुम्हे पढ़ा दूँ ……..माँ का खत है ये मेरे दोस्तों
कैसे मैं तुम्हे पढ़ा दूँ !
इस आइने में जो तस्वीर है
कैसे मैं तुम्हे दिखा दूँ !………..
अपनी तस्वीर को आँखों से
तो सभी लगाते है
बनी मेरी तकदीर जिस तस्वीर से
वो सूरत तुम्हे कैसे दिखा दूँ !…….
कैसे दिखा दूँ …?
बिना काजर की वो आँखे
जो खुलते ही सवेरा ..
झपकते ही शाम
कर देती है……………
न जाने कितनी तलब हैं
हमारी आहट की उसको
जिसे देखते ही वो सुकून
की साँस भर लेती है ….
कई बार रो-रो कर हमने,
उसके आँचल को भिगोया
पर न जाने उसने किस अंदाज़ से
हर बार अपने आंसुओ को हमसे छुपाया
इन अनमोल आंसुओं के मोल को
इस खत में कैसे बता दूँ !…….
ऐ दोस्त अब तू ही बता
ये खत मैं तुम्हे कैसे पढ़ा दूँ !…..
अपनी चाहत को न देखा न उसने
हमारी हर चाहत के आगे
बस हमारे चेहरों पे खिली हंसी से …
ख़ुशी मिलती थी उसको………..
हिम्मत तो न थी वो
बोल सके कुछ घर पे ….
पर सदा हमारे नए फैसलों
के लिए आवाज़ उठाई उसने …
कम खा के हमारे लिए
रोटिया बचाई जिसने …
हमारी ही गलतियो के लिए
गालियाँ खाई जिसने …………
उस ममता की मूर्ति की
त्याग कहानी ………..
मैं यूँ ……. ही
कैसे लिख दूँ !…
ऐ दोस्त अब तू ही बता
ये खत मैं तुम्हे कैसे पढ़ा दूँ !…..
इस ख़त में मेरी माँ के हांथो
का वो एहसास हैं …….
जिसने कभी दर्द से करहाते
शारीर को छु कर ………
दवा का काम किया था ।
इस ख़त में उस थप्पड़
की गूंज हैं ……
जिसे मार कर माँ ने
मुझे उससे भी जायदा
प्यार किया था !…….
ऐ बचपन तू काश !
वही रुक जाता…..
जंहा मेरी माँ के आँचल से
मेरा सर ढक जाता …..
उनकी गोद में सर रखकर
मैं सुकून की नींद सो जाता ..
काश! माँ तेरे संग वो पल वाही रुक जाता ।
माँ के संग बिताये ……
हर लम्हे , हर एहसास को
इन चंद शब्दों से
कैसे सजा दूँ !……….
ऐ दोस्त अब तू ही बता
ये खत मैं तुम्हे कैसे पढ़ा दूँ !….
“तू पढ़ेगा इस खत को
तो रोयेगा तू भी ….
क्योकि तेरी भी माँ होंगी
मेरी माँ के जैसी …….
जिसके होंठो पे कभी
हमारे लिए बददुआ न होगी
ऐ दोस्त वो “माँ” ही हैं
जो हमसे कभी खफा नहीं होगी “
(अर्चना चतुर्वेदी )
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